मडुआ
मंडुआ या रागी (ragi) पूरे भारत में लगभग 2300 मीटर की ऊंचाई पर पाया जाता है। इसकी विशेषतः पर्वतीय क्षेत्रों में खेती की जाती है। प्रायः मंडुआ के आटे को गेहूं के आटे में मिलाकर प्रयोग में लाया जाता है और देश भर में इससे कई तरह के व्यंजन तैयार किए जाते हैं। रागी से उपमा, सूप, बिस्किट्स, डोसा आदि बनाए जाते हैं मडुए में प्रोटीन, कैल्शियम, आयरन, ट्रिपटोफैन, मिथियोनिन, लेशिथिन, फास्फोरस, फाइबर, और कार्बोहाइड्रेट की मात्रा बहुत अधिक होती है, जो शरीर में मौजूद कई बीमारियों के लिए रामबाण इलाज के तौर पर काम करती है।
भंगजीर
भंगजीरा के पौधे राज्य के पर्वतीय क्षेत्र के जंगलों में काफी संख्या में पाए जाते हैं। घरों में भी स्थानीय निवासी किचन गार्डन में इसे उगाते हैं और इसके बीज का उपयोग चटनी आदि बनाने में करते हैं। कैप के वैज्ञानिकों ने भंगजीरा पर शोध किया तो बात सामने आई कि इसमें दिल के लिए फायदेमंद ओमेगा-3 और ओमेगा-6 की मात्रा है।
जख्या
जख्या कई एंटी-हेल्मिंथिक, एंटीपीयरेटिक, एनाल्जेसिक, एंटी-डायरियल और हेपेटोप्रोटेक्टिव जैसे गुणों से भरा है। जख्या के बीजों में करीब 18 फीसदी तेल फैटी एसिड तथा अमीनो अम्ल जैसे गुणों से भरपूर होता है। इसके अलावा इसके बीजों में फाइबर, कार्बोहाइड्रेड, स्टार्च, प्रोटीन, विटामिन सी, विटामिन ई, मैगनीशियम, कैल्शियम, पोटेशियम, सोडियम, मैगनीज, आयरन और जिंक आदि पौष्टिक तत्व होते हैं। साथ ही यह रक्तशोधक, स्वेदकारी, एंटीसेप्टिक, ज्वरनाशक इत्यादि गुणों से परिपूर्ण है। इसके इस्तेमाल से खांसी, हैजा, बुखार, एसिडिटी, अल्सर, गठिया इत्यादि बीमारियों का बचाव किया जाता है।
पहाड़ी दाल
पहाड़ी दाल स्वादिष्ट होने के साथ ही औषधीय गुणों से भरपूर उत्तराखंडी दालें जैविक होने के साथ स्वास्थ्य के लिहाज से भी बेहद लाभदायी हैं। इनकी खेती गढ़वाल-कुमाऊं के पर्वतीय इलाकों में की जाती है। संस्कृति और परंपराओं में ही नहीं, यहां के खान-पान में भी विविधता का समावेश है। पौष्टिक तत्वों से भरपूर उत्तराखंडी खान-पान में मोटी दालों को विशेष स्थान मिला हुआ है। यहां होने वाली दालें राजमा, गहथ (कुलथ), उड़द, तोर, लोबिया, काले भट, नौरंगी (रयांस), सफेद छेमी आदि औषधीय गुणों से भरपूर हैं और इन्हें मौसम के हिसाब से उपयोग में लाया जाता है। खास बात यह कि उत्तराखंडी दालें जैविक होने के साथ स्वास्थ्य के लिहाज से भी बेहद लाभदायी हैं। इनकी खेती गढ़वाल-कुमाऊं के पर्वतीय इलाकों में की जाती है। औषधीय गुणों से भरपूर हैं पहाड़ी दालें
मसूर दाल
मसूर दाल के सेवन से ब्लड शुगर लेवल को कंट्रोल किया जा सकता है. फाइबर से भरपूर मसूर दाल डायबिटीज रोगियों के लिए अच्छी मानी जाती है. असल में मसूर दाल में आयरन, प्रोटीन, फाइबर, मिनरल और कार्बोहाइड्रेट जैसे पोषक तत्व पाए जाते हैं ।
उड़द
उड़द में पाए जाने वाले पौष्टिक तत्व सिर दर्द, नकसीर, बुखार, सूजन जैसी अनेक बीमारियों से राहत दिलाने में मदद करते हैं. खास बात ये है कि उड़द की दाल अन्य प्रकार की दालों में अधिक बल देने वाली व पोषक होती है. उड़द दाल में पाए जाने वाले पोषक तत्वों की बात करें तो इसमें प्रोटीन के अलावा फैट, कार्बोहाइड्रेट, विटामिन बी, आयरन,फोलिक एसिड,मैग्नीशियम, कैल्शियम और पोटेशियम जैसे पोषक तत्व पाए जाते हैं. जो शरीर को कई बीमारियों से बचाने में मददगार माने जाते हैं।
गहथ
हल्के भूरे रंग की गहथ पहाड़ की औषधीय गुण वाली प्रमुख दाल है। अन्य दालों के मुकाबले इसमें रेशा आधिक रहता है इसलिए पचने में आसान रहती है। जाड़े में लोग इसकी गथ्वाणी खाते हैं, जिससे ठंड पास नहीं फटकती। इसके साथ ही इससे फांणु, पटुंगी, भरवा परांठे, खिचड़ी आदि स्वादिष्ट व्यंजन बनाए जाते हैं। यह गुर्दे की पथरी में बेहद कारगर होती है। । कहा ये भी जाता है कि जब पुराने जमाने में जब डायनामाइट का चलन पहाड़ों में ज्यादा नहीं हुआ था तब लोग इसका उपयोग खेतों के पत्थर तोड़ने में करते थे। रात-रात पत्थर के नीचे आग जलाकर रखते थे और सुबह-सुबह गरम पत्थर पर गथ्वाणी डालते थे तो वह दरक जाता था। खास बात यह है कि गहत ऊबड़-खाबड़ और पथरीली जमीन में अच्छा होता है और बाजार में यह बासमती के बराबर दोमों में बिकता है।
तुअर
हरे और भूरे रंग वाली तोर या तुअर अरहर की एक प्रजाति है, जो मैदानी अरहर से बिल्कुल अलग है। पहाड़ी तोर का दाना छोटा होता है, जिसका शोरबा या सूप बनाकर पीने से सर्दी दूर होती है।
नौरंगी दालें
विभिन्न आकर्षक नौ रंगों में उगने वाली नौरंगी की दालें बेहद सुपाच्य होती है। इसे रैस, रयांस, तित्रया, झिलंगा भी कहते हैं। इसका स्वाद लाजवाब होता है।
भट(सोयाबीन)
उत्तराखंड में काले, भूरे और सफेद रंग के भट की छह प्रजातियां मिलती हैं। काले भट में भरपूर मात्रा में प्रोटीन और ओमेगा-3 पाया जाता है। इससे बनने वाला चुड़कानी व डुबके बेहद स्वादिष्ट होते हैं।
उड़द के पकौड़े और चैंसू
पहाड़ी उड़द के पकौड़े और चैसूं का जायका बेहद लजीज होता है। बासमती और रानी पोखरी इसकी लोकप्रिय प्रजातियां हैं।
राजमा
उत्तराखंड में राजमा को छेमी के नाम से जाना जाता है। हर्षिल, चकराता, जोशीमठ और मुन्स्यारी में होने वाली राजमा पूरे देश में सर्वोत्तम किस्म की मानी जाती है। पहाड़ की राजमा आसानी से पकने वाली और स्वाद में उत्तम होती है।
लोबिया
लोबिया या सुंठा की दाल आमतौर पर रोजाना घरों में बनाई जाती है। हल्के पीले और सफेद रंग की लोबिया में अन्य दालों के मुकाबले फाइबर की मात्रा अधिक होती है। लोबिया में एंटी आक्सीडेंट प्रचुर मात्रा में पाया जाता हैं। यह शरीर में लगने वाली बीमारियों से बचाता हैं।
दालों में पौषणमान प्रति ग्राम
दालें | जल | प्रोटीन | सा | र्बोज | फाइबर | कैल्शियम (मि. ग्राम) | स्फोरस (मि. ग्राम) | यरन | ऊर्जा (कैलोरी) |
राजमा | 12 | 22.9 | 1.3 | 60.6 | - | 260 | 410 | 6.8 | 346 |
उड़द | 10.9 | 24 | 1.4 | 59.6 | 0.9 | 154 | 385 | 9.1 | 47 |
गहथ | 11.8 | 22 | 0.5 | 7.2 | 5.3 | 287 | 3.11 | .4 | 321 |
लोबिया | 13.4 | 24.1 | 1 | 54.5 | 3.8 | 77 | 414 | 5.9 | 323 |
तोर | 13.4 | 22.3 | 1.7 | 57.6 | 1.5 | 73 | 304 | 5.8 | 335 |
भट | 8.1 | 43.3 | 19.5 | 20.9 | 3.7 | 240 | 690 | 11.5 | 432 |
ये आंकड़े बीज बचाओ आंदोलन के सूत्रधार विजय जड़धारी की पुस्तक उत्तरखंड में पौष्टिक खानपान की संस्कृति से लिए गए हैं।
लोगों में बढ़ रही जागरुकता
लोग अब पारंपरिक अनाजों के प्रति जागरूक हो रहे हैं। पहाड़ी दालें सेहत के लिए बेहद फायदेमंद हैं। हाई प्रोटीन वैल्यू होने के साथ ही यह रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ाती हैं। काले भट में प्रोटीन की प्रचूर मात्रा होती है। वहीं गहथ की दाल की तासीर गर्म होती है, जो गुर्दे की पथरी में बेहद फायदेमंद होती है। इसका सूप बुखार और निमोनिया आदि में लाभदायक है।
उत्पादन को बढ़ावा देने की है जरूरत
गिरी गल्ला (किसानों को समर्पित एक योजना) पिछले कुछ वर्षों में जैविक उत्पादों और खाद्य पदार्थों की लोकप्रियता में काफी वृद्धि हुई है। बहुत से लोग जैविक भोजन खाने का आनंद ले रहे हैं क्योंकि यह स्वस्थ, स्वादिष्ट और अधिक प्रभावी है। जैविक खाद्य स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने में मदद करता है।
गिरी गल्ला द्वारा प्रोत्साहित पहाड़ी अनाज व दालें व अन्य |
मंडुआ | झंगोरा | चौलाई | उड़द | तिल |
राजमा लाल | चना | मसूर | सोयाबीन | लाल चावल |
गहत | मिर्च | भंगजीर | राजमा छेमी | तोर लाल |
हल्दी | तोर सफ़ेद | राजमा चित्र | मेथी | जख्या |
लोभिया | नवरंगी | पंचरत्न आटा | मंडुए का आटा | भांग दाना |
मक्की का आटा | कला भट | धनिया | राजमा भूरा | मिक्स छेमी |
नेचुरल शहद | मड़ुआ के बिस्किट | पहाड़ी घी | पहाड़ी बड़ी नाल | गहत दाल बड़ीया |